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वो समझती है बेवफ़ा हूँ मैं | MS Mahawar

जिसकी चाहत में गुमशुदा हूँ मैं वो समझती है बेवफ़ा हूँ मैं देख कर के पलट गया तू मुझे तेरे दिल का ही रास्ता हूँ मैं बैठते हैं रक़ीब मेरे पास हिज्र की कारगर दवा हूँ मैं आइने में नहीं मिलेगा तू ढूँढ मुझको तिरा पता हूँ मैं गर मुहब्बत गुनाह है तो फिर ठीक कहते हैं सब बुरा हूँ मैं तू ने इक चीख ही सुनी है बस सुन ख़मोशी भी अनसुना हूँ मैं तू मुझे सोचता नहीं होगा सोच कर के ये मर गया हूँ मैं #MSMahawar #GhazalbyMSMahawar

उसे किसी की दुल्हन होते देखना है मुझे | Urdu Hindi Ghazal | M S Mahawar

रब्त क्या है परिंदों से पूछो | M S Mahawar

  चश्म-ए-दिल में  जब  अश्क  मेरे  मिले जाँ   सभी   में    ही   अक्स  तेरे  मिले बज़्म    में    दूर    से   चमक   रहे  जो दिल   में   उनके    मुझे    अँधेरे   मिले दर्द   का   ज़िक्र   था   जहाँ   जहाँ   पे उस    वरक़    पे   निशान    मेरे    मिले रब्त     क्या    है    परिंदों    से    पूछो पेड़       सूखे      मगर     बसेरे    मिले छोड़   आया   हूँ   दिल   मिरा   घर   पर हर    तरफ़    ही     मुझे    लुटेरे   मिले दर्द-ए-तन्हाई    से    मरा    है     कोई लोग   दिन   रात  उस   को  घेरे   मिले ये     ख़ज़ाना     मिला    मुहब्बत    में तेरे    ख़त    कमरें    में    बिखेरे   मिले चाहकर   भी   निकल   सके   न  कोई साए   ज़ुल्फ़ों   के    जब    घनेरे  मिले हो   परेशान   निकले   जब    घर   से राह     तन्हाइयों     के     डेरे     मिले साथ     मेरे    ये     रात     रहने     दो मिलना   हो   गर   जिसे    सवेरे   मिले

क़ाफ़िला | M S Mahawar

क़ाफ़िला साथ में था मेरे मगर उम्र  भर रस्ते पे अकेला चला

अपने भी घर

चित्र
  जो   कभी   भी   नहीं   हुआ  हासिल उस   को  खोने  का  डर  नहीं  जाता   तेरे   घर   के   लिए  जो   भी  निकला अब  वो  अपने   भी   घर  नहीं  जाता

मय-कदा

जाओ  जहाँ  कहीं  भी  जहाँ  तुम  को  जाना  है ये   मय-कदा   ही   दोस्त    हमारा   ठिकाना  है

नए इल्ज़ाम

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